Saturday, December 31, 2011

Mahamritunjay Mantra and its meaning - महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ


||महा मृत्‍युंजय मंत्र ||


त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मा मृतात्


समस्‍त संसार के पालनहार
तीन नेत्रो वाले शिव की हम अराधना करते है
विश्‍व मे सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव
मृत्‍यु न कि मोक्ष से हमे मुक्ति दिलाएं




  1. त्रि - ध्रववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है।

  2. यम - अध्ववरसु प्राण का घोतक है, जो मुख में स्थित है।

  3. ब - सोम वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण कर्ण में स्थित है।

  4. कम - जल वसु देवता का घोतक है, जो वाम कर्ण में स्थित है।

  5. य - वायु वसु का घोतक है, जो दक्षिण बाहु में स्थित है।

  6. जा- अग्नि वसु का घोतक है, जो बाम बाहु में स्थित है।

  7. म - प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है।

  8. हे - प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित है।

  9. सु -वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है।

  10. ग -शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।

  11. न्धिम् -गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है।

  12. पु- अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्तह के मध्य भाग में स्थित है।

  13. ष्टि - अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है, बाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है।

  14. व - पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है।

  15. र्ध - भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है, बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।

  16. नम् - कपाली रुद्र का घोतक है । उरु मूल में स्थित है।

  17. उ- दिक्पति रुद्र का घोतक है । यक्ष जानु में स्थित है।

  18. र्वा - स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है।

  19. रु - भर्ग रुद्र का घोतक है, जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है।

  20. क - धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है।

  21. मि - अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है।

  22. व - मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है।

  23. ब - वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है।

  24. न्धा - अंशु आदित्यद का घोतक है । वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है।

  25. नात् - भगादित्यअ का बोधक है । वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है।

  26. मृ - विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है।

  27. र्त्यो् - दन्दाददित्य् का बोधक है । वाम पार्श्वि भाग में स्थित है।

  28. मु - पूषादित्यं का बोधक है । पृष्ठै भगा में स्थित है ।

  29. क्षी - पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है । नाभि स्थिल में स्थित है।

  30. य - त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है । गुहय भाग में स्थित है।

  31. मां - विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्व्रुप दोनों भुजाओं में स्थित है।

  32. मृ - प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है।

  33. तात् - अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।


जिस प्रकार मंत्रा में अलग अलग वर्णो (अक्षरों ) की शक्तियाँ हैं । उसी प्रकार अलग - अल पदों की भी शक्तियॉं है।
त्र्यम्‍‍बकम् - त्रैलोक्यक शक्ति का बोध कराता है जो सिर में स्थित है।
यजा- सुगन्धात शक्ति का घोतक है जो ललाट में स्थित है ।
महे- माया शक्ति का द्योतक है जो कानों में स्थित है।
सुगन्धिम् - सुगन्धि शक्ति का द्योतक है जो नासिका (नाक) में स्थित है।
पुष्टि - पुरन्दिरी शकित का द्योतक है जो मुख में स्थित है।
वर्धनम - वंशकरी शक्ति का द्योतक है जो कंठ में स्थित है ।
उर्वा - ऊर्ध्देक शक्ति का द्योतक है जो ह्रदय में स्थित है ।
रुक - रुक्तदवती शक्ति का द्योतक है जो नाभि में स्थित है।
मिव रुक्मावती शक्ति का बोध कराता है जो कटि भाग में स्थित है ।
बन्धानात् - बर्बरी शक्ति का द्योतक है जो गुह्य भाग में स्थित है ।
मृत्यो: - मन्त्र्वती शक्ति का द्योतक है जो उरुव्दंय में स्थित है।
मुक्षीय - मुक्तिकरी शक्तिक का द्योतक है जो जानुव्दओय में स्थित है ।
मा - माशकिक्तत सहित महाकालेश का बोधक है जो दोंनों जंघाओ में स्थित है ।
अमृतात - अमृतवती शक्तिका द्योतक है जो पैरो के तलुओं में स्थित है।

शक्ति षट्कात्म क अर्थ
त्र्यम्ब कम् - सर्वज्ञशक्ति ।
यजामहे - नित्यक तृप्ति ।
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् - अनादि बोधित शक्ति ।
उर्वारुकमिव बन्ध्नात् - स्वोतंत्रता शक्ति।
मत्योरर्मुक्षीय - नित्यनभलप्ता शक्ति।
मामृतात - अचित्यी अनन्ति शक्ति।

चारों चरणों का अर्थ

  1. त्र्यम्बशकं यजामहे - अम्बिका शक्ति सहित त्र्यम्ब केश का द्योतक है जो पूर्व दिशा में प्रवाही शक्ति में स्थित है ।

  2. सुगन्धि पुष्टि वर्धनम - वामा शक्ति सहित मृत्यु्जय का द्योतक है जो दक्षिण दिशा में प्रवाही शक्ति में स्थित है ।

  3. उर्वारुकमिव बन्ध नात् - भीमा शक्ति सहित महादेवेश का द्योतक है जो पश्चिम में प्रवाहित शक्ति में स्थित है ।

  4. मृत्योर्मुक्षीय मामृतात- द्रीपदी शक्ति सहित संजीवनीश का द्योतक है जो उत्त र दिशामें प्रवाहित शक्ति में स्थित है।
    इस तरह चारों दिशाओं मे यह मंत्रा करता है।



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