Saturday, December 31, 2011

शनि देव ने शिव को गुरु माना

प्रख्यात ज्योतिर्विदों ने शनि के बारे में अधिक इसलिए लिखा क्योंकि आकाश में स्थित ग्रहों में अकेला शनि ही ऐसा ग्रह है जिसके बारे में कुछ विशेष लिखा जा सकता है। जातक के जीवन पर शनि अतिशीघ्र प्रभाव डालता है, इसलिए इसे " अतिप्रभावी ग्रह " माना गया है। शनि ग्रह जन समुदाय को शीघ्र प्रभावित करता है। मनमुटाव, रंजिश, कलह, कारावास, हत्या, दीर्घकालीन शारीरिक व्याधियां, उपेक्षा, अपमान, असफलता और बाधाओं के अतिरिक्त संबंधों में कटुता और घोर निराश का अहंकार ऐसी कठपुतली है जिनकी डोर शनि के हाथों में है।
शनि कर्मयोग का पक्षधर है दूसरे शब्दों में शनि जिनके लिए अनुकूल होता है, वो उधमी, कर्मयोगी एवं मेहनतशील होते हैं। उनका परिश्रम उन्हें शनि के आंतकों से मुक्त करके पुरस्कृत करता है। वृक्ष लग्न के जातक व जातिकाओं के लिए शनि क्षेष्ट व योग कारक ग्रह है। क्योंकि यहां वो भाग्याधिपति व कर्माधिपति दोनों होते हैं। ऐसे जातकों के जन्म चक्र में जहां भी शनि स्थित हो उस भाव से संबंध फलों की वृद्धि होती है। शनि अपनी दशा में अत्यंत शुभ फल प्रदान करता है। तुला लग्न में जन्म लेने वाले जातकों के लिए भी शनि सर्वक्षेष्ट फल दाता एवं योगकारक होता है। यहां शनि चौथे और पांचवें भाव का स्वामी होने के कारण शुभ फलदायी होता है। इस पर भी शनि की क्रूर प्रवृति और उसके स्वभाव मूलभूत गुणों को कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए। परिश्रम , उधम और मंदगति शनि की प्रकृति है। इसका उदाहरण इस बात से दिया जा सकता है कि शनि की दशमस्थ स्थिति जातक को उच्च पद तक तो अव य ले जाती है। किन्तु इसके लिए जातक को बहुत परिश्रम करना पडेग़ा तथा उसकी उन्नति धीरे धीरे होगी। अत: शनि के फल का विचार करते समय उसके गुणों के साथ उसकी प्रवृति पर भी विचार करना चाहिए।
शास्त्रों में शनिदेव व शनि ग्रह के बारे में वर्णित प्रवृति अधिकांश बातें उनके भयप्रद कुरुप का ही पोषण करती हैं। परन्तु शनि ग्रह के बारे में इस प्रकार की अधिकंश बातें आज मिथ्या सिद्ध हो रही है। शक्तिशाली दूरबीनों से देखने और उपग्रहों के माध्यम से प्राप्त चित्रों एवं अन्य सूचनाओं के आधार पर आज यह प्रमाणित हो चुका है कि नव ग्रहों की बात ही क्या शनि ग्रह आकाश मंडल के सभी ग्रहों से अधिक सुन्दर है। शनि ग्रह पृथ्वी से 89 करोड़ मील अर्थात् लगभग डेढ़ अरब किलोमीटर दूर है। आप इन महान शनि देव जी की पूजा अराधना प्रारम्भ करने जा रहे हैं तो आईए शनि देव जी के जन्म, परिवार, स्वरुप और उनके साथियों की एक झलक प्राप्त करने के लिए आगामी अध्याय का अवलोकन करें।

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करें न कोए।
जो सुख में सुमिरन करें तो दुख काहे को होए।।


शिवजी के अमर अवतार भैरव जी, आदि शक्ति के प्रचंड स्वरुप भगवती महाकाली और मृत्यु के नियंत्रक यमराज जी के समान ही देवाधि देव शनि देव जी के बारे में अनेक भ्रांत धारणाएं हमारे समाज में व्याप्त हैं। ग्रह के रुप में सर्वाधिक क्रुर और राहु केतु के समान ही केवल अशुभ फलदायक ग्रह मानने की गलत धारणा के जहां अधिकांश व्यक्ति शिकार हैं। वहीं शनि देव जी को क्रूर देव मानने की भावना तो जन सामान्य पर इस प्रकार हावी हो चुकी है कि आपका नाम लेना तक अधिकंश व्यक्ति उचित नहीं समझते वैसे इसका प्रमुख कारण हमारा अज्ञान ही है। वास्तव में सभी महानताएं शनि देव जी में हैं। आप भगवान भास्कर जैसे अर्थात् सूर्य देव के पुत्र हैं और इस रुप में यमराज के सगे बड़े भाई है। भगवान महादेव जी आपके गुरु और रक्षक हैं तथा महादेव जी के आदेश पर ही दुष्टो को दण्ड देने के कार्य आप नियमित रुप से करते हैं। फिर इसमें शनि देव का क्या दोष है इस बारे में स्वयं शनि देव जी ने अपनी पत्नी से कहा कि यह सत्य है कि मैं भगवान शिव के आदेश से दुष्टो को दण्ड देता हूं। परन्तु जो व्यक्ति पापी नहीं हैं। उसे मैं कभी त्रास नहीं दूंगा। जो क्यक्ति मेरी, मेरे गुरु शिव की, मेरे मित्र हनुमान जी की नियमित अराधना उपासना करेगा उसको इस लोक में मैं सभी सुख तो दूंगा ही अंत में भगवान शिव के चरणों में उसे वास भी प्राप्त हो जाएगा।

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